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सत्य और वाणी
सत्य
सद्भावना रखनेवाले हर व्यक्ति में सत्य के लिए प्रयास होना चाहिये ।
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हमारे जीवन को 'सत्य के लिए प्रेम' और 'प्रकाश' के लिए प्यास द्वारा शासित होना चाहिये ।
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अगर व्यक्ति भगवान् के समीप रहना चाहता है तो उसके जीवन पर पूर्ण सत्यता का शासन होना चाहिये ।
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केवल 'वे' ही जो पूर्ण रूप से सत्यवादी हों मेरे सच्चे बालक हो सकते हैं । १३ दिसम्बर, १९३३
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आज से और हमेशा के लिए 'सत्य' का प्रकाश धरती पर जन्म ले । २१ फरवरी, १९५३
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'सत्य' का 'प्रकाश' जगत् के ऊपर मंडरा रहा है ताकि उसमें व्याप्त होकर उसका भविष्य गढ़े ।
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'सत्य' के ज्ञान द्वारा सभी चीजें रूपान्तरित होनी चाहियें । ६ मई, १९५४ *
२१० 'सत्य' को अपनी शक्ति मानो, 'सत्य' को अपना आश्रय मानो । २८ अेप्रैल, १९५४
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प्रेम और हर्ष के साथ भगवान् के सत्य का अनुसरण करना एकमात्र महत्त्वपूर्ण चीज है । ९ मई, १९५४
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सत्य हमारे अन्दर है, हमें केवल उसके बारे में अवगत होना है । १७ मई, १९५४
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धन्य होगा वह दिन जब पृथ्वी 'सत्य' के प्रति जागकर, केवल भगवान् के लिए जियेगी । २८ अगस्त, १९५४
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'सत्य' तुम्हारे अन्दर है--लेकिन उसे चरितार्थ करने के लिए तुम्हें उसकी चाह करनी होगी । २१ अगस्त, १९५४
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भगवान् की 'इच्छा' है कि मन जाने और 'वे' कहते हैं, ''जागो और 'सत्य' के बारे में सचेत होओ ।'' २२ अक्तूबर, १९५४
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'सत्य' के 'प्रभु' हमेशा तुम्हारे साथ रहें । १७ सितम्बर, १९५८ *
२११ 'सत्य' का पुष्प तुम्हारे अन्दर खिले ।
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हम सबको सत्य की एकनिष्ठ सेना होना चाहिये । ३ नवम्बर, १९६५
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हम 'सत्य' के लिए और अपनी सत्ता एवं अपने कार्य-कलाप में उसकी विजय के लिए अभीप्सा करते हैं । १६ दिसम्बर, १९६७
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'सत्य' को अपना स्वामी और पथप्रदर्शक बनने दो । १६ दिसम्बर, १९६७
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'सत्य' के प्रति अपने समर्पण को पूर्ण और स्थायी बनाओ ।
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सफलता की अपेक्षा सत्य के लिए अधिक उत्सुक होओ । १२ फरवरी, १९६९
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'सत्य' से चिपके रहो ।
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हे शाश्वत 'सत्य' की 'भव्यता'
मैं 'तेरा' आवाहन करती हूं ।
मैं तुझे नमस्कार करती हूं, हे भावी कल के 'सूर्य' । जुलाई, १९७१ *
२१२ परम 'प्रभो' , 'शाश्वत सत्य'
हम केवल 'तेरी' ही आज्ञा मानें
और 'सत्य' के अनुसार जियें । जून १९७१
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(उड़ीसा के 'रायगढ़ स्टडी सर्कल' के नाम सन्देश)
समय आ रहा है जब 'सत्य' दुनिया पर शासन करेगा ।
क्या तुम उसे जल्दी लाने के लिए कार्य करोगे ?
आशीर्वाद । १९७१
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आओ, हम सब बढ़ती हुई सचाई और निष्कपटता के साथ 'भागवत सत्य' की अभिव्यक्ति के लिए कार्य करें । ३ मई, १९७२
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'सत्य' के आगमन को नमस्कार ।
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